जीवन के इस सफर में हम उस दिन बड़े हो जाते हैं ... जब अपने आंसू खुद ही पोछकर फिर खड़े हो जाते हैं ....!! जीवन के इस सफर में, हम वास्तव में उसी दिन बड़े हो जाते हैं, जब बिना किसी सहारे के, अपने आँसू खुद पोछते हैं और फिर से मुस्कुराकर आगे बढ़ते हैं। यही वह पल होता है जब हम भीतर से मजबूत बनते हैं और हर चुनौती का सामना करने का साहस पाते हैं। यह आत्मनिर्भरता और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक है, जो हमें संघर्षों से हार मानने के बजाय, हर गिरावट से सीखने और जीवन को नए उत्साह से अपनाने की प्रेरणा देता है। यही सच्चा आत्मविकास और परिपक्वता की निशानी है।
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